Saturday, March 5, 2011

दो कमरे का मन do kamre ka man

चिंता का विषय तो होना ही चाहिए कि इधर भौतिकता के मलवे पर आ बैठी हैं मनुष्य विरोधी विडम्बनाएं। उन्हें अंतरिक्ष में घर बनाने के सपने देखने वाले मनुष्य ने ही स्वयं आमंत्रित किया है स्वर्ग को नरक में तब्दील कर नए स्वर्ग की खोज में। समय नहीं है दौड़ से बाहर हो यह देखने परखने के लिए उसके पास कि आखिर उसका मूल अर्जन क्या है और क्या होना चाहिए था।
विचारणीय मुद्या यह भी है कि स्त्री विमर्श और दलित विमर्श जैसे ज्वलंत मुद्यों पर पिछले कुछ वर्षों से हो रहे फार्मूला बद्ध लेखन और बौद्धिक वागजाल के मकड़जाल के चलते हिन्दी साहित्य परिवर्तित समय की उन आहटों की ओर से आँख कान मूंदे हुए है जिसके संक्रमण से संक्रमित मानवीय प्रवृत्तियाँ उस तलछट से मुँह मोड़े हुए है जहाँ विषमताओं को खत्म करने के लिए कृतसंकल्प उसका संघर्ष उनकी ही कब्रों पर नयी विषमताओं के प्रेतों को साध रहा है। आईने में कुछ भी धुधला नहीं रहा। क्षत विक्षत सुदृढ़ भारतीय कौटुम्बीय जीवन क्षूब्ध अवााक गहरे यह महसूस कर रहा है कि भूमंडली करण और उदारीकरण के दौड़ में जहाँ पूरा विश्व अपनी सरहदों से मुक्त हो विश्वग्राम के व्यापकत्व का हिस्सा हो रहा है वहीं बाजारवाद और उपभोक्तावाद के शिकंजे में कसता हुआ आत्मकेन्द्रित संवेदना क्षरित मुष्य क्षुद्र और बौना।
कलानाथ मिश्र का सजग रचनाकार अपनी समाज सापेक्ष दृष्टि से उन आहटों को निरन्तर टोह और सुन रहा है जिसे सुना जाना और गुना जाना समय रहते बहुत जरूरी है। उसी जरूरत की अनिवार्यता से जनमती हैं -'दो कमरे का मन` जैसी अद्भुत कथा-रचना। मनुष्य और प्रकृति की परस्परता की सदियों पुरानी अदम्य ललक से अभिव्यक्ति पाती है उनकी मर्मस्पर्शी मनोवैज्ञानिक कहानी 'आम का पेड़`।
बाजाड़वाद और अंधे अँधेरेां की उपभोक्तावादी मानसिकता की काली परछाइयाँ 'मोक्ष`,'डालर पुत्र`, 'तेजाब`, 'पार्क` जैसी उनकी अन्य बाँधे रखने वाली गझिन कथा-रचनाओं के मर्म में सघनता से प्रतिबिंबित हुई हंै। जीवन मूल्यों की वापसी के लिए संघर्षरत उनकी यह सार्थक कथायात्रा निश्चय ही ताजे हवा के झोंके-सी आश्वस्तकारी है। हिन्दी कथा-संसार को इस उर्जावान कथाकार से बहुत उम्मीदें हैं
चित्रा मुद्गल, प्रख्यात कथालेखिका


आधुनिक युग में कथा साहित्य अत्यंत सशक्त विधाक रूप में अवतरित भ चुकल अछि। अपन वर्णन विन्यास, चित्रात्मकता, अनुभूतिक मार्मिकता, शिल्पकत वैशिष्टक कारणे आई मैथिली कथा अन्य कोनो भाषाक साहित्य सं स्पर्धा करवाक योग्य अछि। साहित्य समाजक आइना होइत अछि तें समाजक विभिन्न कालक स्वरूप् साहित्य में आकार पबैत अछि। एहिठाम इहो उल्ल्ेख आवश्यक जे साहित्य समाजक चित्र अवश्य अछि मुदा ओकरा फोटोग्राफी मात्र नहि थीक। ओ एहेन चित्र अछि जाहिमें खीचल हर रेखा सम्भावित यथार्थ कें सत्य बनबैत अछि। कहक अभिप्राय ई जे कथा के जखन लोक चेतना सँघ् जुड़ाव हेतैक ओहिमें परिवेशगत जागरुकता रहतैक तघ् समकालीन समाजक यथार्थ चित्र ओहि साहित्य में प्रतिविम्बित हेबे करतैक, अपन माटि पानि के गंध ओहि रचना में सन्हिएबे करतैक अन्यथा ओ कथा कोनो विदेशी कथाक नकल मात्र रहि जायत ओहि में मौलिकताक सर्वथा अभाव रहत। समकालीन कथा साहित्य में समाज सघ् सरोकार स्थापित करवाक तरीका बदल लैक, समाजक हालचाल जनवाक पद्धति में सेहो बदलाव आएल अछि संंगहि रचना दृष्टि में सेहो परिवर्तन एलैक। भूमंडलीकरण, संचार माध्यमक बढैत जाल, पाश्चात्य संस्कृतिक प्रभाव, आधुनिकताक हवा सँघ् कोनो क्षेत्र अप्रभावित नहि रहि सकैत अछि। ई कहब आवश्यक नहि जे मिथिला सेहो बाचल नहि अछि। एहि प्रभावक कारणे मिथिलाक संस्कृति, रहन-सहन, खान-पीन, पहिरब-ओढब, गीतनाद, विवाह दान, स्त्रिी पुरुषक संबंध सब में परिवर्तन आयल अछि। जखन समाज बदलतैक तघ् निर्विवाद रूपे ओकर सुगबुगाहट साहित्य में देखना जेतैक। संबंध सभक नब परिभाषा समयक संग बदलैत जेहेन बनल ओही रूप में समकालीन कथा साहित्य में स्वरूप ग्रहण कयलक। सांस्कृतिक मूल्यक क्षरण, टुटैत परिवार, आर्थक स्थिति में बदलाव, एकसरूआपन, कुंठा, स्त्री पुरुष के संबंधक बदलैत रूप, बाजारवाद के प्रभाव वैश्वीकरण आदि के प्रभाव स्वरूप भारतीय आम आदमी, मध्य तथा निम्न वर्ग के व्यक्तिक जीवन स्थिति, विचार, संवेदना में जे परिवर्तन आएल अछि वैह आजुक सत्य अछि ओही जीवन स्थिति, सामर्थ्य, संस्कार आ सीमा में वास्तिविकता कें टोह लेबाक कोशिस आजुक कथा साहित्य में भेटत। मिथिलाक एहि नब स्वरूप कें मैथिली कथा साहित्य अपना मंे कोना समाहित कयलक संगहि ईहो जे पाठकक की अपेक्षा छनि आधुनिक कथा साहित्य सँघ् अथवा ई कही जे मिथिला समाजक नब स्वरूप मैथिली कथा में कोन रूपे प्रतिबिम्बित वा चित्रित भेल तेकर पड़ताल करब, टोह लेबाक एक प्रयास अछि ई पुस्तक।


Thursday, June 4, 2009


हिन्दी उपन्यस मे संस्कृत रचनाकारों का जीवन वृत,
हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र विधान,
जीवन छ्न्द (कविता संग्रह), समकालीन बिहार की विभूतियां, शिघ्र प्रकाश्य: दो कमडे का मन (कथा संग्रह),आवाडा मसीहा की औपन्यासिकता।


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Wednesday, November 12, 2008

पुस्त एक परिचय

प्रस्तुत पुस्तक आधुनिक बिहार के निर्माता डॉ० सच्चदानन्द सिन्हा द्वारा लिखित 'सम एमिनेन्ट बिहार कन्टेम्पोरारीज' का हिन्दी अनुवाद है। मूल पुस्तक १९४३ में प्रकाशित हुई थी और अपने समय के अत्यंत चर्चित रचनाओं मंे एक थी। इस पुस्तक में लगभग बीस ऐसे महापुरूषों के जीवन वृघ का रेखांकन है जिनका सिन्हा साहब से अंतरंग परिचय था। पुस्तक के अवलोकन के बाद पाठकों के मन में वर्णित व्यक्तियों की महानता और उपलब्धियों के अतिरिक्त एक अन्य आवृघ उभरती है और वह है सिन्हा साहब का अपना व्यक्तित्व, अपने जमाने पर जरिया और प्रतिभाओं का सूक्ष्म पूल्यांकन। यह पुस्तक उस बीते युग की गतिविधियों का जीवन्त चित्र प्रस्तुत करती है, जिसमें बिहार नींद से उठकर अंगड़ाई ले रहा था और वर्णित महापुरूष इस प्रघ्यिा में बहुमूल्य योगदान दे रहे थे। वस्तुत: यह पुस्तक अभिजात्य वर्ग के रचनात्मक कृतियों के चित्रण से अधिक उस युग का चित्रण है जिसमें बिहार का स्वतंत्र परिचय प्रस्फुटित हो रहा था। पुस्तक के प्रथम अध्याय में ही सिन्हा साहब ने बिहार को अलग प्रन्त बनाने में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक प्रयासों का निरूपण किया है जिसे वर्घमान पीढ़ी भूल चुकी है। जीवनी लेखक का कार्य केवल व्यक्तित्व को ही विश्लेषित करना मात्र नहीं होता, अपितु उसके सम्पूर्ण रूप, संस्कार का तटस्थ भाव से चित्रित करना होता है। जीवन चरित्र प्राय: ऐसे व्यक्तित्व को स्मरणीय बनाने के लिए लिखा जाता है, जिसमें जनसामान्य को पगेरित करने की तथा समाज के उन्नयन का संदेया देने की शक्ति होती है। प्रस्तुत संकलन में डा० सिन्हा ने एक सम्पन्न एवं विविधतापूर्ण जीवन चरित्र-दीर्घा प्रस्तुत की है। डा० सिन्हा विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे। उनका कार्य क्षेत्र बहुमुखी था। विभिन्न रूपों में उन्होंने लोकसेवा की। विधि में, साहित्य मेंं, शिक्षा में उनका अपूल्य योगदान था। विधायक के रूप में, प्रशासक के रूप में, राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी ख्याति हुई। सिन्हा लाइब्रेरी उनके पुस्तकानूराग का प्रतीक है। बिहार में पत्रकारिता के पुरोधा के रूप में उन्हें जाना जाता है। वह महामानव थे और अपने युग के दर्पण थे। मूल पुस्तक अब उपलब्ध नहींे है। हिन्दी रूपान्तर उस कमी को दूर करेगा अैार अधिक पाठकों तक पहघ्ुच सकेगा। डा० कलानाथ मिश्र ने कठिन परिश्रम और लगन से इस काम को पूरा किया है। अब जबकि बिहार का पुन: बंटवारा हो चुका है, इस पुस्तक का महत्व और भी बढ़ जाता है। आशा है पाठक इसे पसंद करेंगे और पूर्वजों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रेरणा ग्रहण करेंगे।

Friday, October 24, 2008



जीवन छ्न्द (कविता संग्रह)
जीवन छन्द की कविताएघ् जीवन से सरोकार स्थापित करने की कविताएघ् हैं। मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को येे कविताएघ् कई स्तरों पर छूती हैं। पठक सहज ही कविता के भाव सिंन्धु में परत - दर - परत उतरता चला जाता है।कवि जहाघ् एक ओर अपनी कविताओं के माध्यम से पाठक को जीवन से साक्षात्कार कराने की चेष्टा की है वहीं दूसरी ओर सामाजिक यथार्थ से भी परिचित कराया है। भाव, विचार और यथार्थ की दृष्टि से कवि कलानाथ जी की कविताएघ् विलक्षण है।कलानाथ मेरे प्रिय कवि हैं। उनकी कविताएघ् जिस व्यापक सत्य से, सामाजिक अनुभव से सम्पृक्त करती हैं, उनकी व्याप्ति, गहराई, सच्चाई की पहचान के साथ पाठक की हैसियत से यह भी लगता है कि यह सच याकि यह अनुभव, है तो हमारा ही, हमारे जीवन का, हमारे बीच का है पर यदि कवि की प्रतिभा ने उसका सम्प्रेषण हम तक न किया होता, उसकी ऐसी सजीव पहचान हमें न कराई होती, तो वह अलक्षित ही रह जाता। कलानाथ की कविताएघ् रोशनदान हैं। कविता की एक-एक पंक्ति को पढ़कर साहिल के शब्दों में अपनी यह स्वाभाविक प्रतिघ्यिा होगी - 'ले के हर बूंद निकलती है हथेली पे चिराग।`अज्ञेय ने ऐसे शक्ति सम्पन्न रचनाकारों को महान कहा है। मैं कलानाथ जी को इस दृष्टि से महत्वपूर्ण मानता हूघ्। कलानाथ ने अपनी कविताओं में जो सत्य उद्घाटित किया है वह न केवल हमारे व्यापकतम अनुभव के क्षेत्र का है, बल्कि यदि उन्होंने न दिखाया होता तो अनदेखा रह जात, पर एक बार दिखजाने के बाद वह कभी ओझल होने वाला नहीं है।कथ्य की शक्तिमघा के साथ कथन की यथा सम्भव अकृतिमता कलानाथ की कविता की एक खास विषेशता मानी जा सकती है। इनकी कविताओ को पढ़कर आप यह घोषित नहीं कर सकते की कवि-कर्म सरल हो गया है। अमर कुमार सिंह
निदेशक
बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी
पटना
हिन्दी उपन्यस मे संस्कृत रचनाकारों क जीवन वृत
हिन्दी उपन्यास मे संस्कृत रचनाकारों का जीवन वृत'हिन्दी उपन्यास में संस्कृत रचनाकारों का जीवन वृत` उपन्यासालोचन की दृस्टि से महत्वपूर्ण पुस्तक है । प्रस्तुत पुस्तक में डा० कलानाथ मिश्र ने संस्कृत साहित्कारांे के जीवन-वृत पर आधृत तीन उपन्यासों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । संस्कृत के तीन अमर साहित्यकार वाणभट ,कालिदास ,कल्हण के जीवन-वृत पर तीन उपन्यास लिखे गये हैं । बाणभट की आत्मकथा पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की महान कृति है । बाणभट की जीवन वृत को केन्द्र मंे रखकर तत्कालीन आर्यावर्त की सांस्कृतिक चेतना ,आस्था , राजनितिक एवं सामाजिक स्थिति का द्विवेद्वी जी ने व्यापक चित्र अंकित किया है । महाकवि कालिदास के कवि व्यक्ितत्व को पोद्वार रामअवतार 'अरूण` ने अपने उपन्यास 'कालिदास की आत्मकथा` मंे प्रस्तुत किया है । इसी प्रकार कृष्णाभावुक ने महाकवि कल्हण के जीवन-वृघ पर हरा दर्पण उपन्यास की रचना की है। पुस्तक मंे उक्त तीनों उपन्यासों का गंभीरता पूर्वक व्यापक आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । तथ्य परक दृष्टिसे जीवन वृत का अवलोकन अैार साहित्यिक संवेदनशीलता से औपन्यासिक कल्पना का मूल्यांकन, इन दोनों दायित्वों का निर्वाह करते हुए लेखक ने उक्त उपन्यासों का सूक्ष्म संतुलित एवं वैज्ञानिक विश्लेशण किया है । डा० मिश्र की पूर्व प्रकाशित पुस्तक ''हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र विधान '' की सफलता उन्हें उपन्यासलोचन के क्षेत्र मंे ख्याति दिला चुकी है । यह पुस्तक हिन्दी उपस्यासलोचन के क्षेत्र में एक नवीन प्रयास होने की दृृष्टि से मूल्यवान है । पुस्तक में लेखक ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि साहित्यकारों के अज्ञात अथवा अल्पज्ञात जीवन वृघों के पुनर्निमान की प्रकिया में उनकी कालजयी कृतियों का भी विशेष स्थान है,जिनसे उनकी माहघा, आस्था तथा अस्मिता प्राय: पूर्णत: उद्भासित होती है। आलोच्य ग्रंथ के सम्बन्ध में दूसरा ज्वलन्त प्रश्न यह है कि उपन्यास कला की दृष्टि से विवेच्य उपन्यासों के रचयिताओं को कहाघ् तक सफलता प्राप्त हुईर है। इस प्रयास में लेखक का विवेचन, विश्लेषण संयत,संगत तथा स्वीकार्य है। ग्रंथ में इसका भी परीक्षण किया गसा है कि किस प्रकार विविध मूल्यों से उद्भासित और सम्पोषित होकर भी समकालीन उपन्यासकारों ने मानवतावाद के विशाल फलक पर विस्मृतप्राय जीवन्त चित्रों को एकत्र कर युगऱ्यथार्थ को प्रत्यक्ष कर दिया है औ इस कार्य में उन्हेें कहाघ् तक सफलता हाथ लगी है।

हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र

हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र विधान

प्रस्तुत पुस्तक में डा० कलानाथ मिश्र ने हिन्दी साहित्यालोचन के एक रिक्त स्थान की पूर्ति का श्लाध्य प्रयास किया है। इन्होंने साहित्यकारों के जीवन-वृघ पर आधृत समग्र हिन्दी उपन्यासों का एकत्र व्यवस्थित अध्ययन-मूल्यांकन कर उपन्यासालोचन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।लोकमानस को प्रभावित करने वाले साहित्यकार के जीवन-वृघ पर आधृत उपन्यास में रचनाकार उसके जीवन के सम्बन्ध में प्रचलित लोक धारणा और अपनी औपन्यासिक कल्पना में सामंजस्य सिाापित करने में एक द्वन्द से गुजरता है। अत: ऐसे उपन्यासों के विश्लेषण मूल्यांकन में आलोचक से यह अपेक्षा की जाती है कि उपन्यासकार के उस अंतर्द्वन्द को उद्घाटित करने के लिए उसमें शेध दृष्टि और साहित्यिक संवेदनशीलता हो। डा० मिश्र ने जहाघ् एक ओर उपन्यासों में प्रस्तुत साहित्यकारों से संबद्ध तथ्यों के मूल्यांकन में ंशोध दृष्टि का परिचय दिया है,वहाघ् दूसरी ओर रचनाकारों की औपन्यासिक कल्पना के पूल्य निर्धारण में साहित्यिक संवेदनशीलता का भी परिचय दिया है।