Friday, October 24, 2008

हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र

हिन्दी उपन्यास में साहित्यकारों का चरित्र विधान

प्रस्तुत पुस्तक में डा० कलानाथ मिश्र ने हिन्दी साहित्यालोचन के एक रिक्त स्थान की पूर्ति का श्लाध्य प्रयास किया है। इन्होंने साहित्यकारों के जीवन-वृघ पर आधृत समग्र हिन्दी उपन्यासों का एकत्र व्यवस्थित अध्ययन-मूल्यांकन कर उपन्यासालोचन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।लोकमानस को प्रभावित करने वाले साहित्यकार के जीवन-वृघ पर आधृत उपन्यास में रचनाकार उसके जीवन के सम्बन्ध में प्रचलित लोक धारणा और अपनी औपन्यासिक कल्पना में सामंजस्य सिाापित करने में एक द्वन्द से गुजरता है। अत: ऐसे उपन्यासों के विश्लेषण मूल्यांकन में आलोचक से यह अपेक्षा की जाती है कि उपन्यासकार के उस अंतर्द्वन्द को उद्घाटित करने के लिए उसमें शेध दृष्टि और साहित्यिक संवेदनशीलता हो। डा० मिश्र ने जहाघ् एक ओर उपन्यासों में प्रस्तुत साहित्यकारों से संबद्ध तथ्यों के मूल्यांकन में ंशोध दृष्टि का परिचय दिया है,वहाघ् दूसरी ओर रचनाकारों की औपन्यासिक कल्पना के पूल्य निर्धारण में साहित्यिक संवेदनशीलता का भी परिचय दिया है।

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